मै एक साधारण परिवार से था तो पठाई इसलिए भी की, की आगे चलके आसानी से नौकरी मिलेगी, बचपन सबका अच्छा होता है मेरा भी अच्छा बीत गया.
गवर्नमेंट जॉब का कभी नही सोचा, इंजिनियरिंग कर ली लेकिन फीस के लिए बॅंक से लोन लेना पड़ा, कॉलेज के बाद ८- ९ महीने जॉब लग ही नही पाई और लोन की किस्ते भी सिर पर आ गयी थी, काफ़ी मेहनत करनी पड़ी थी अपनी पहली जॉब के लिए, घर का बड़ा था मॅ, बहनो के शादी करने के लिए कुछ लोन लिया कुछ पैसे दोस्तो ने दिए, सारे कर्जे ख़तम करते करते मै मै 30 साल का हो गया था!
जब मै 32 का था मैने शादी कर ली, पैसो की दिक्कत तो थी लेकिन अपनी पत्नी के साथ 2-3 साल बहुत अछा समय बिताया , जल्द ही मेरे घर मे एक बेटा आया और फिर एक बेटी, बस ज़िम्मेदारी और बढ़ गई, तब से ही बस एक बात दिमाग़ मे आ गयी की बच्चो को पठाना है और बिटिया की शादी के लिए पैसे जोड़ने है, कुछ इक्चाए मैने मार ली और कुछ मेरी पत्नी ने, जीतने पैसे बचा पाते थे हम बच्चो के लिए जमा कर देते थे,
धीरे धीरे तरक्की हुई थी मेरी किराए के मकान मे कब तक रहता , किस्तो पे घर ले लिया सोचा बेटे के काम आएगा. अब मै 60 के करीब था, बेटी की शादी भी हो गई थी, और लड़का भी जॉब करने दूसरे शहर चला गया. सारे काम आख़िर निपट ही गये लेकिन फिर भी मुझे कुछ कमी हमेशा लगती थी , कभी कभी मै सोचता था की लाइफ तो मैने काटी है जी तो पाया ही नही , घर के लिए अपनी सारी खुशियो को छोड़ दिया और आज इस घर मे सिर्फ़ हम दो बूढ़े.
कभी कभी सोचता था की अब मै अपने लिए जियूंगा लेकिन तब तक हम बूढ़े हो चुके थे सहारे की ज़रूरत थी लेकिन सहारा था ही नही, लेकिन फिर भी मै अपनी पत्नी का हाथ पकड़ के कुछ कदम चल लिया करता था. मेरे पास अपने भी पैसे थे और मेरा बेटा भी भेजता था लेकिन अब पैसे तो किसी काम के रहे ही नही. सारा सारा दिन हम दोनो बस पुरानी बाते किया करते थे की कैसे सब कुछ साथ मे किया,
सपने तो मेरे भी थे लेकिन घर और बच्चो के ज़िम्मेदारी मे सारे पूरे ही नही हो पाए, बेटा अपनी लाइफ मे व्यस्त था और अब मेरा घर मुझे ही परेशान करने लगा था, धीरे धीरे मै और बीमार रहने लगा , मन नही था जीने का लेकिन अपनी पत्नी को किसके सहारे छोड़ता!
आज सवेरे से मै कुछ बोल ही नही पा रहा, मेरा शरीर मेरा साथ ही नही दे रहा, शायद मेरी पत्नी को पता चल गया है की ये मेरा आख़िरी दिन है, वो बस रो रही है, और कह रही है की आपने तो कहा था की अब हम दोनो अपने सपनो के लिए जियेंगे , उठिए ना , टहलने चलते है, वो बस रोए जा रही है!
और मै ये सोच रहा की मै अपनी लाइफ को ठीक से चला ही नही पाया, मैने जो भी बच्चो के लिए किया वो हर मा बाप करते ही है लेकिन फिर भी मुझे अपने लिए, हम दोनो के लिए भी टाइम निकालना चाहिए था! आज लग रहा की अगर दोबारा जीने का मौका मिलेगा तो तो अपने बच्चो को सिर्फ़ अच्छी परवरिश और अच्छी तालीम ही देने के बारे मे सोचूँगा और फिर अगर कुछ बचा तो अपनी खुशियो के लिए भी जियूंगा क्योंकि अच्छी परवरिश और अच्छी तालीम से तो कोई भी सब कुछ हासिल कर ही लेगा.इस पिता की कहानी मे पिता स्वार्थी नही है जो अपनी खुशियो के ना पूरा होने पे दुखी है वो दुखी है क्योंकि वो सोच रहा की खुशियो पे हक़ तो माता पिता का भी होता है आज कितने ही मा बाप अपने बच्चो के लिए अपने सारे सपनो को जला देते है और फिर अपने अधूरे सपनो के साथ खुद भी जल के इस दुनिया से चले जाते है
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hi
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